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मरने से क्या डरना......

आज दिनांक १८.३.२३ को प्रदत्त  स्वच्छन्द विषय हेतु मेरी प्रस्तुति
...............मरने से क्या डरना...............

मृत्यु शाश्वत सत्य है, प्राकृतिक चक्र विधान,
जन्म लिया जिसने पृथ्वी पर ,मृत्यु से नहीं निदान।

बड़े यत्न से मानव अपने बच्चों का पालन करता है,
मौत का ख्याल नहीं आता वह प्यार बहुत ही करता है।

लोभ,मोह,माया मे फॅंस कर मानव जग मे रहता है,
अन्तहीन लालसा-,दलदल मे वह अनवरत दुःख भोगा करता है़

इच्छा पूरी करने के प्रयत्न मे वह आगे बढ़ता जाता  है
असफल हो कर कभी कोई इन्सां अवसाद-ग्रस्त हो जाता  है।

एक‌ नकारात्मक भाव है ' मृत्यु ' उसे  सोच कर क्या करना,
कर्म-पथिक बन कर मानव को सत्कर्म सदा करते रहना। हैं

मृत्यु ही है मंज़िल जीवन की उसे स्वयं ही आना है
क्यों कोई डरे विचार करे जब छुटकारा उससे न पाना है

कल्पना  मात्र ही मृत्यु  की बहुधा मानव की सुध-बुध हर लेती,
मोहवश हो रहता मानव और मृत्यु सोच  उसको व्यग्र बना देती।

आनन्द कुमार मित्तल, अलीगढ़

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3 Comments

शानदार

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बहुत ही सुंदर और संदेश देती हुई रचना

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